लफ्ज (सियासी मसीहा)


✍️लफ्ज✍️
मैं सियासी नहीं मगर कम भी नहीं
दर्द गहरा सा हूं पर जख्म भी नही
मैं वो उम्मीद हूं जिसमें मौसम खिले
रोते-रोते मिले आंख नम भी नहीं
आहटें सुन के जिनकी हंसे तितलियां
ऐसे अब दास्तानें सनम भी नहीं
कैसे कह दूं “विनय” मुझको फिर तु मिले
किसको फिर मांगें ऐसे जनम भी नहीं
सैकड़ों फूल हैं अब खिले जब खिले
वो मोहब्बत सा लेकिन चमन भी नहीं
दिन भी अच्छे हैं और रात भी शबनमी
और किसी तौर चैन-ओ-अमन भी नहीं
चांद तारों की बारात ले के चला
वो गगन तो मगन वो मगन भी नहीं
बंद करना चाहते थे जिस पन्नी को
उसमें लिपटे हैं छूते बदन भी नहीं
ए-मसीहा तेरी आंख के सामने
मर रहे सैकड़ों तन कफन भी नहीं
कैसे कह दूं “विनय” कैसे क्या लिख दिया
लफ्ज एक घूंट का आचमन भी नहीं
#विनय_आजाद #yqdidi #yqhindi #लफ्ज़ #सियासत #सियासी #मसीहा 
 
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