मदारी (मुकद्दर)
✍️ मदारी (मुकद्दर) ✍️
जाने कितने रोज बकरे दुलारे जाते हैं
जाने कितने रोज छलते हैं मारे जाते हैं
उस्तरे को उसे तुम खुद ही धार देते हो
बाल के धोखे में फिर सर उतारे जाते हैं
इसके उसके जहां में जिसके भी घर लुटते हैं
लोग हर हाल में अपने ही मारे जाते हैं
ऐसे देखे हैं झोली वाले मदारी हमने
ताज ठोकर में राजा भी उतारे जाते हैं
जिसको कहते हैं नसीहत वही मुकद्दर है
जिसके फन में हो इशारे सुधारे जाते हैं
झेल जाते हैं हम दुश्मन का वार सीने पर
और महोब्बत में हम यारो से मारे जाते हैं
हम आसमान में दिल अपना टांक आए “विनय”
लोग अब तक उसे सूरज पुकारे जाते हैं
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