राज का सिंहासन और महामूर्ख (सिंहासन के शूल)


✍️कहानी शिर्षक✍️

🌹राजा की सिंहासन और महामूर्ख🌹

🌵 सिंहासन के शूल 🌵

“मूर्खता खुदकुशी का धंधा है”

“मान जा खेल बहोत गंदा है”

✍️✍️

एक बार की बात है, एक राजा के दरबार में एक साधु वेशधारी मूर्ख प्रवेश कर गया। मूर्ख का एक चेला पहले ही दरबार की प्रजा में छुपकर सम्मिलित हो चुका था। ताकि परेशानी के वक्त वह अपने गुरु की मदद कर सके, जैसे ही साधु वेशधारी मूर्ख ने दरबार में प्रवेश किया उसका शिष्य महाराज की जय हो, महाराज की जय हो, का उदघोष करने लगा और बोला कि, आज दरबार में बहुत ही पहुंचे हुए महात्मा आए हुए हैं। कृपया राजन उन्हें उचित स्थान प्रदान करें। राजा ने मूर्ख को महात्मा जानकर ज्ञानी जनों में स्थान ग्रहण करने का इशारा किया। परंतु उस मूर्ख का महामूर्ख शिष्य बोला उठा कि, हे राजन इस दरबार में महाराज के बैठने योग्य केवल एक ही स्थान है और वह है राज सिंहासन। राजा साधु जनों का बड़ा आदर करते थे अतः अपने सिंहासन से उठ खड़े हुए और साधु वेशधारी मूर्ख को सिंहासन पर विराजमान होने का न्योता दे दिया। वह मूर्ख अति प्रसन्न हुआ परंतु वह तो कभी सिंहासन पर बैठा ही नहीं था, उसने कहीं सुन रखा था की राज सिंहासन में बड़े शूल होते हैं। अतः उसने सिंहासन को उल्टा कर दिया और उस पर बैठ गया और उसका महामूर्ख शिष्य जय-जयकार करते हुए कहने लगा कि, आज तक राजा को यह पता ही नहीं था कि, सिंहासन पर कैसे बैठा जाता है। इसी कारण देश तरक्की नहीं कर पा रहा है। मेरे गुरु ने आज सिंहासन को सही दिशा और दशा प्रदान की है। अब इस देश का उद्धार होने से कोई नहीं रोक सकता। महाराज की जय हो, महाराज की जय हो। राजा आश्चर्यचकित था कि, सिंहासन के पलटते ही प्रजा की बुद्धि भी पलट चुकी थी और प्रजा उस साधु वेशधारी मूर्ख की जय-जयकार कर रही थी। अब राजा और उसके दरबारी बड़े चिंतित और परेशान थे। कि, कैसे इस मूर्ख से छुटकारा पाया जाए, ताकि देश का विनाश होने से रोका जा सके चारों ओर मूर्खतापूर्ण वातावरण का नजारा था। परंतु राजा को कोई राह नजर आती दिखाई नहीं दे रही थी लोग भूख और बिमारी से मर रहे थे, भय के कारण लोग #खुदकुशी कर रहे थे और मूर्ख सिंहासन पर बैठा हुआ खुद ही अपने गुणगान कर रहा था कि मैं ही महान हूं, मैं ही ईमान हूं। फिर एक दिन साधु वेशधारी मूर्ख ने अपने आप को भगवान बताते हुए कहा कि मेरी इच्छा के विरुद्ध मौत भी मुझे छू नहीं सकती और फिर इस बात को सत्य साबित करने के लिए उसने अपना माथा खुद ही फोड़ लिया, अपने पैरों में खुद ही कुल्हाड़ी दे मारी! तब कहीं जाकर राजा और राज दरबारियों ने राहत की सांस ली।

लेखक:- विनय आजाद

विनय त्यागी (अध्यापक)

आर० एन० इंटर कॉलेज मुरादाबाद

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