उनसे मिलना

✍️उनसे मिलना✍️
मुर्दा तन से वो कफन तक उतार लेते हैं
सर जो झुक जाए तो वो सर उतार लेते हैं
बहुत जालिम हैं इस कलयुग में जमाने वाले
अपनी नस्लों की भी गर्दन उतार लेते हैं
जब भी मिलता हूं उनसे उंगलियां गिन लेता हूं
हाथ मिल जाए तो वो तन उतार लेते हैं
चंद आंखें हैं जिनमें आज भी मैं बच्चा हूं
बूढ़ी आंखों में वो बचपन उतार लेते हैं
लाख गलती करूं फिर भी मेरे वो अपने हैं
नर्म हाथों से वो अब भी दुलार लेते हैं
उनसे मिलना “विनय” तो नजरें बचाकर मिलना
अपनी आंखों में वो दिल तक उतार लेते हैं
तुम महोब्बत में तिजारत पर उतर आए “विनय”
दिल के बदले में कहां दिल उधार लेते हैं
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