राजा साहब और रामलाल की युक्ति


✍️ कहानी ✍️
🌹 शीर्षक 🌹
“राजा साहब और रामलाल की युक्ति”
🤫 बेटा कुछ भी बन जाना
पर माली मत बनना 😜
एक राजा साहब थे, बड़े ही शौकीन मिजाज राजा साहब। राजा साहब के आलीशान महल में खुशबूदार फूलों का एक शानदार बगीचा था, राजा साहब गुलाब के फूलों का रसपान बड़े शौक से किया करते। बस इसी शौक के चलते राजा साहब ने चार-चार कुशल माली बगीचे की देखभाल के लिए रख छोड़े थे। राजा साहब ने बड़ी शान से अपना जीवन व्यतीत किया और एक दिन आपने बेटे को सिंहासन सौंप कर स्वर्ग सिधार गए। नए राजा को भी अपने पिता की भांति फूलों का रस पीने का शौक लग गया, परंतु अब बगीचे के माली बूढ़े हो चले थे कई सेवानिवृत्त हो गए थे। देखते-देखते बगीचे की देखभाल के लिए केवल एक माली रह गया, रामलाल, रामलाल बहुत ही कुशल और फूलों के अत्यंत जानकार थे, मीठे-मीठे फूलों का रस प्रतिदिन राजा को पिलाते और बगीचे की देखभाल करते, एक दिन जब राजा अति प्रसन्न थे रामलाल ने राजा साहब से निवेदन किया कि, राजा साहब अब मैं भी बूढ़ा हो चला हूं और आपके बगीचे के तीन माली पहले ही सेवानिवृत्त हो चुके हैं, मैं अकेला कब-तक बगीचे की देखरेख कर पाऊंगा कृपया आप बगीचे के लिए कुछ नए माली की नियुक्ति कर दें। राजा साहब को रामलाल की बात उचित जान पड़ी, राजा साहब ने रामलाल से पूछा कि उसे कितनी तनख्वाह मिलती है। रामलाल ने बड़ी नम्रता पूर्वक हिचकते हुए कहा साहब ₹50000 महीना वेतन कुछ रहने खाने के भत्ते मिलते हैं। राजा साहब चौंक गए ₹50000 महीना सिर्फ कुछ गिलास जूस पीने के लिए, और ऊपर से भत्ते भी, राजा साहब ने रामलाल से कहा रामलाल कोई ऐसी युक्ति सोचो जिससे सांप भी मर जाए और लाठी भी ना टूटे, रामलाल का बेटा माली की ट्रेनिंग कर चुका था, सो उसने अच्छा अवसर जानकर राजा साहब को संविदा पर अस्थाई भर्ती की सलाह दे डाली। राजा ने सोचा कि क्यों ना दो माली की संविदा पर भर्ती कर ली जाए ₹5000 में काम करने वाले बहुत मिल जाएंगे और फिर राजा साहब ने दो वैल ट्रेंड माली संविदा पर रख लिए और ₹5000 महीना उनका वेतन निर्धारित कर दिया, और उनके नियुक्ति पत्र पर स्पष्ट लिख दिया कि अन्य कोई भत्ता उनको देय नहीं होगा वे भविष्य में कोई वेतन वृद्धि या स्थायीकरण की मांग नहीं कर सकेंगे। रामलाल अब सेवानिवृत्त हो चुके थे, अब नए माली राजा को मीठे फलों का जूस पिलाते थे और मात्र ₹10000 महीने में बढ़िया काम चल रहा था, जबकि रामलाल ₹25000 पेंशन और उस पर महंगाई भत्ता घर बैठे पा रहे थे। राजा साहब ने बड़ी समझदारी से काम लिया था, संविदा कर्मियों को भविष्य में पेंशन भी नहीं देनी होगी, राजा साहब अपनी समझदारी पर बहुत प्रसन्न थे। एक दिन संविदा पर नियुक्त मालियों ने बड़ी हिम्मत करके राजा साहब से कहा के हुजूर आपके बगीचे में कुछ नए पौधों की आवश्यकता है, ताकि आपको ताजे फलों का जूस निरंतर प्राप्त होता रहे। कई पौधे पुराने हो गए हैं और उनके फूलों में अब वह बात नहीं। राजा साहब ने कहा, ठीक है और राजा साहब दोनों मालियों को लेकर पौधे खरीदने नर्सरी जा धमके, नर्सरी में राजा साहब ने दूर से ही लहलहाते पौधों को खरीद लेने का आदेश दिया माली कुछ कहना चाहते थे परंतु राजा ने उनकी एक न सुनी और अपनी इच्छा से सुंदर-सुंदर मजबूत तनेदार नए पौधे अपने बगीचे में लगवा दिए और दोनों मालियों को आदेश दिया कि नए पौधों के फूलों का जूस तुरंत पेश किया जाए। राजा का आदेश था, टाला नहीं जा सकता था, दोनों मालियों ने डरते-डरते नए पौधों के फूलों का जूस तैयार कर राजा के समक्ष पेश कर दिया। राजा ने जैसे ही पहला घूंट भरा कड़वाहट के मारे राजा का गला कराह उठा, राजा साहब गुलाब के पौधों की जगह नीम के पौधे उठा लाए थे और अब बगीचे में नीम के पौधे लहलहा रहे थे। बड़े क्रोध में राजा बोला अरे निकम्मों क्या मैं तुम दोनों को ₹10000 महीना यह कड़वा जहर पीने के लिए देता हूं। तुमने नए पौधों का सत्यानाश कर दिया तुमसे अच्छा तो रामलाल ही था फिर राजा ने रामलाल को पुनः संविदा भर्ती हेतु निमंत्रण भेजा, रामलाल भी खुशी-खुशी हाजिर हो गया कि ₹25,000 तो पेंशन मिल ही रही है ₹5000 और ऊपर से संविदा के मिलेंगे दोनों ओर से लाभ ही लाभ है। रामलाल के आते ही राजा ने दोनों संविदा मालियों की छुट्टी कर दी अब रामलाल अकेले ही सारा बोझ ढ़ो रहा है और रामलाल का अपना बेटा जोकि माली की ट्रेनिंग कर चुका है। बेरोजगार घर में बैठा है। राजा को भी नीम के फूलों का रस मीठा लगने लगा है, अब रामलाल दुनिया को नसीहत देता फिरता है कि, बेटा कुछ भी बन जाना पर माली मत बनना, माली मत बनना, माली मत बनना।
लेखक : विनय आजाद
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