इतिहास और धर्म

✍️ इतिहास और धर्म ✍️
इतिहास की ये विडंबना ही कही जाएगी। कि इतिहासकारों एवं रचनाकारों ने कई बार अधर्मियों को भी श्रेष्ठता का जामा पहनाने के अपने स्वार्थी उद्देश्य से। उनके व्यक्तिगत कर्त्तव्यों को उनके व्यक्तिगत धर्म के रूप में परिभाषित कर समाज के समक्ष प्रस्तुत कर दिया।
या यूं कहिए कि धर्म की अनंत परिभाषाएं रच डालीं और समाज की पीढ़ियां आज तक आंख मूंदकर उनका अनुसरण कर रही हैं, और शायद आगे भी करती रहेंगी।

“धर्म कभी व्यक्तिगत नहीं हो सकता” “व्यक्तिगत तो कर्त्तव्य होते हैं”

कर्त्तव्य और धर्म दोनों बिल्कुल अलग हैं।
जैसे - पिता के प्रति पुत्र का कर्त्तव्य और पुत्र के प्रति पिता का कर्त्तव्य आदि, कर्त्तव्य व्यक्तिगत व अनंत हो सकते हैं।
परन्तु धर्म एक ही है,

“जो सत्य और न्याय के लिए हो वही धर्म है”

कर्त्तव्य की आड़ लेकर किया गया अन्याय, धर्म कदापि नहीं हो सकता।
युगों-युगों से कर्त्तव्य की आड़ लेकर लोग अधर्म और अन्याय करते आए हैं।
और चाटूकारों ने व्यक्तिगत कर्त्तव्यों को, व्यक्तिगत धर्म के रूप में परिभाषित कर पाप किया है। जिसका दण्ड पीढ़ियां भोग रही हैं और न जाने कब तक भोगेगीं।
#विनय_आजाद #yqdidi #yqhindi #इतिहास_और_धर्म #धर्म

Comments

Popular posts from this blog

विनय (शायरी)

व्यक्ति पूजा (समाज)

आदी